कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर आखिरी दौर में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. खुद प्रधानमंत्री लगातार धुंआधार प्रचार कर रहे हैं. शनिवार को 26 किमी लंबे रोड के बाद आज रविवार को भी पीएम ने बैगलुरु सिटी में बड़ा रोड शो किया. इस दौरान उन्होंने 7 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया.

PM के स्वागत में बरसाए गये फूल

प्रधानमंत्री के रोड शो के दौरान लोगों ने उनके स्वागत में फूल बरसाने के साथ ही मोदी, मोदी के नारे लगाये. प्रधानमंत्री कर्नाटक चुनाव को लेकर बेंगलुरु में शनिवार को भी एक बड़ा रोड शो किया था. उस रोड शो में भी बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी थी. बता दें कि कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई यानी अगले हफ्ते बुधवार को वोट डाले जाएंगे. जिनके नतीजे 13 मई को घोषित होंगे. आज पीएम चार जनसभाओं को भी संबोधित करने वाले हैं। पीएम मोदी की रैली को लेकर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

वीरशैव लिंगायत फोरम ने दिया कांग्रेस को समर्थन

वहीं दूसरी ओर बीजेपी के लिए परेशान करने वाली खबर भी सामने आ गई है. दरअसल, कर्नाटक के वीरशैव लिंगायत फोरम ने 10 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपना समर्थन देने के लिए एक आधिकारिक पत्र जारी किया. फोरम ने लिंगायत समुदाय के लोगों से कांग्रेस को वोट देने का आग्रह किया है.

कर्नाटक में 17 लिंगायत

बीते 5 मई को कांग्रेस नेता शमनूर शिवशंकरप्पा और जगदीश शेट्टार ने कर्नाटक के हुबली में लिंगायत संतों से मुलाकात भी की थी. प्रभावशाली लिंगायत या वीरशैव-लिंगायत समुदाय का महत्व बेहद अहम है क्योंकि कर्नाटक चुनाव के नतीजे तय करने में इस समुदाय की भूमिका प्रमुख होती है और यही वजह है कि हर दल उसे लुभाने की कोशिशों में जुटा है. कहा जाता है कि कर्नाटक की आबादी में लगभग 17 प्रतिशत लिंगायत हैं और कुल 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 100 में इनका प्रभुत्व है. इनमें से अधिकांश सीटें उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र की हैं.

54 लिंगायत विधायकों में 37 बीजपी के

वर्तमान विधानसभा में सभी दलों के 54 लिंगायत विधायक हैं, जिनमें से 37 सत्तारूढ़ बीजेपी के हैं. इसके अलावा, 1952 के बाद से कर्नाटक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 लिंगायत रहे हैं, इसके बाद छह वोक्कालिगा, पांच पिछड़ा वर्ग से और दो ब्राह्मण. आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में जीत के लिए लिंगायतों का समर्थन हासिल करना कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सभी राजनीतिक दल इस प्रभावशाली समुदाय को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

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