जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया है, उन्होने अपनी नई पार्टी का नाम ‘डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’ दिया है।

कांग्रेस से इस्तीफे के बाद गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया, नई पार्टी को लेकर अपने समर्थकों से चर्चा की, दिल्ली-जम्मू-कश्मीर में पार्टी के नाम को लेकर मंथन किया जिसके बाद नई पार्टी का नाम ‘डेमोक्रेटिक आजाद’ पार्टी रखा, गुलाम नबी आजाद  ने कहा था कि उनकी नई पार्टी की विचारधारा उन्ही की नाम की तरह होगी जिसमे सभी धर्मनिरपेक्ष के लोग शामिल हो सकेंगे।

पार्टी के नाम को लेकर मिले सुझावआजाद

अपनी नई पार्टी पर गुलाम नबी ने कहा कि हमें करीब 1 हजार 500 नाम उर्दू, संस्कृत में भेजे गए थे, जिसमे हिन्दी-उर्दू का मिश्रण हिन्दुस्तानी है, हम चाहते थे कि पार्टी का नाम नाम लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण, स्वतंत्र होना चाहिए, ऐसे में ही पार्टी का नया नाम तय किया गया और उसका का नाम डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’दिया गया।

 सभी धर्मों- राजनीतिक दलों का स्वागत– आजाद

गुलाम नबी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हमारी राजनीति जाति या धर्म पर आधारित नहीं होगी, सभी धर्म, राजनीतिक दलों का स्वागत और सम्मान करेंगे, हमने किसी भी पार्टी-नेताओं पर निजी हमला नहीं किया, मैं नीतियों की आलोचना जरूर करता हूं।

26 अगस्त को कांग्रेस से किया किनारा

दरअसल 26 अगस्त को गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से खुद को किनारा कर लिया था, पार्टी के सभी पदों से इस्तीफ दे दिया, हालांकि कांग्रेस छोड़ने के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि वे बीजेपी में शामिल होंगे, बाद में आजाद मीडिया से मुखातिब हुए और इन कयासों पर विराम लगा दिया, उन्होने मीडिया से कहा कि वे किसी भी पार्टी में शामिल नहीं होंगे, कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होने कांग्रेस और राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा, आजाद ने कहा था कि वे अपनी खुद की पार्टी बनाएंगे, लंबे जद्दोजहद के बाद आजाद ने अब पार्टी के नाम का ऐलान कर दिया, आजाद के इस्तीफे के बाद 8 पूर्व मंत्री समेत कई नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया, यानी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।

2005 से 2008 तक जम्मू-कश्मीर के सीएम रहे

गुलाम नबी 2005 में जम्मू-कश्मीर के सीएम बने, इस दौरान नबी ने कांग्रेस से विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का दर्ज की थी और कांग्रेस जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जिसके बाद 2008 में अमरनाथ भूमि का आंदोलन चलने लगा और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

 

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