रहली, सागरमकर संक्रंति के पावन अवसर पर बुंदेलखंड क्षेत्र में शक्कर से बनी मिठाई ‘गड़िया घुल्ला’ का विशेष महत्व है..और यहां कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जो ससुराल और मायके के रिश्तों में प्रेम और स्नेह घोलने का काम करती है…।

हालंकि इन दिनों इस परंपरा में कुछ कमी आई है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवित है…मकर संक्रांति  के पर्व पर लोग स्नान कर खिचड़ी, तिल के लड्डू और गड़िया घुल्ला जैसी मिठाइयों का सेवन बड़े चाव से करते हैं।दरअसल सागर के रहली में आज भी शक्कर के गड़िया घुल्ला की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है…यह मिठाई रिश्तों को मिठास लाने के लिए परंपरागत रूप से एक दूसरे को भेंट दी जाती है.. मकर संक्रांति से लेकर बसंत पंचमी तक गड़िया घुल्ला बनाना एक पुरानी परंपरा है… ।

दरअसल गड़िया घुल्ला शक्कर की चाशनी से तैयार की जाती है, जिसे विभिन्न आकृतियों जैसे हाथी, घोड़ा, ऊंट, बंदर, गाय आदि में ढाला जाता है… जिसके बाद सांचों से निकाला जाता है… और  बिक्री के लिए तैयार किया जाता है। वहीं मकर संक्रांति के पर्व पर इसे भगवान को तिल के लड्डू के साथ अर्पित किया जाता है..।साथ ही इन गाड़िया घुल्ला को बेटियों के ससुराल में भी भेजने की प्राचीन परंपरा है…लोगों का मानना है कि इस परंपरा से  बेटी के ससुराल और मायके के संबंधों में प्रेम  और स्नेह गहरा होता है।

लेकिन आज-कल यह मिठाई बाजार में कम प्रचलित हो गई है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में अब भी इसकी मांग रहती है.. लोग इसे अपने रिश्तेदारों को भेजकर इस पर्व को और भी खास बनाते हैं।…इस तरह, गड़िया घुल्ला न केवल एक पारंपरिक मिठाई है, बल्कि इसे बुंदेलखंड के लोगों की सांस्कृतिक-धरोहर का भी प्रतीक भी माना जाता है।

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