Baba Mahakal Nagri Ujjain

बाबा महाकाल मंदिर या महाकाल लोक (MAHAKAL TEMPLE) : यह मंदिर उज्जैन रेलवे स्टशेन से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, महाकाल मंदिर दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पवित्र और भारत में 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसकी महिमा का विभिन्न पुराणों में भी वर्णन हैं, यहां गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं, दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है, वहीं तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति है जो सिर्फ नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है, इस अवसऱ पर महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है और रात में पूजा-अर्चना की जाती है। अब इस मंदिर का नाम महाकाल लोक दिया गया। यह मंदिर रुद्र सागर झील से घिरा हुआ है… मान्यता है कि मंदिर में एक बार दर्शन करने मात्र से भक्तों का हर काम सिद्ध हो सकता है, मंदिर में हर रोज़ भगवान शिव का अलग-अलग तरह का श्रृंगार किया जाता है, और हर दिन सुबह के वक्त बाबा महाकाल की भस्मा आरती की जाती है  ।

यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देवी अहिल्यावाई होल्कर हवाई अड्डा इंदौर है, जो शहर से करीब 51 किलीमीटर दूर है, जहां बस और टैक्सी माध्यम से पहुंचा जा सकता है। उज्जैन का बस स्टैंड नानाखेड़ा है…जो रेलवे स्टेशन के 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

बड़ा गड़पति मंदिर या बड़े गणेश जी (GANESH TEMPLE) :  यह मंदिर महाकाल मंदिर के पीछे और पास में एक और भव्य मंदिर है, जिसे बड़े गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है,  यह करीब 114 साल पुरानी है, यहां हर रक्षाबंधन पर बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालु भगवान गणेश को राखी बांधती और भेंजती है। इसी मंदिर में एक शिव लिंग और एक हनुमान जी की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित है, जहां  श्री राम भक्त हनुमान अपने पंचमुखी स्वरूप में हैं, मंदिर में नवग्रह का भी एक विशेष स्थान है, जिसमें खगोल की दिशा अनुरूप सभी ग्रह विराजमान हैं।

भारत माता मंदिर: यहा मंदिर बाबा महाकाल मंदिर के पास और ठीक सामने है, जहां भारत माता की प्रतिमा और अखंड भारत का 3डी मानचित्र हैं, जिसमें सभी प्रमुख प्राचीन स्थलों, तीर्थस्थलों और ज्योतिर्लिंगों को अंकित किया गया है…।

महाकाल मंदिर के पास स्थित मंदर में हर दिन बड़ी तादात में लोग पहुंचते हैं… वहीं समय-समय पर सांस्कृतिक और देशभक्ति के गीतों का भी आयोजन किया जाता है, देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए भी यह मंदिर आकर्षण का केंद्र है।

सम्राट राजा विक्रमादित्य का मंदिर:  महाकाल मंदिर के दाई तरफ और बगल में राजा विक्रमादित्य का मंदिर है, मान्यता के मुताबिक रुद्र सागर के पास एक टीला है, जहां सिंहासन जमीन में दबा है, साल 2015 को इस स्थान पर राजा विक्रमादित्य के सिंहासन वाली प्रतिमा स्थापित की गई थी और जहां एक पैदल पुल भी बन, यह मंदिर रुद्र सागर के बीचों-बीच स्थित है।इसे राजा विक्रमादित्य का यह मंदिर महाकाल लोक का ही हिस्सा है। टीवी सीरियल पैताल पच्चीसी की कहानी यहीं की प्रचलित कहानी है।

राजा विक्रमादित्य की 32 पुतलियों वाला रहस्यमई सिंहासन को लेकर भी कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं, इन सभी पुतलियों की प्रतिमा नाम के साथ स्थापित है, मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य का दरबार उनकी कुलदेवी हरसिद्धी माता के मंदिर के सामने लगता था और वही उनका सिंहासन स्थित था, उस स्थान पर खुदाई से निकले पत्थरों को सिंहासन और अवशेष मानकर उनकी हर रोज पूजा की जाती है, बड़ी संख्या में पर्यटक विक्रमादित्य के टीले को भी देखने आते हैं। दरअसल उज्जैन नगरी की पहचान बाबा महाकाल के अलावा राजा विक्रमादित्य से भी होती है।

हरिसिद्धि देवी का मंदिर:  यह मंदिर बाबा महाकाल मंदिर और विक्रमादित्य मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित है, इस मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियां हैं, मुख्य प्रवेश द्वार पर दोनों तरफस भैरव जी की मूर्तियां हैं, जिसमे सबसे ऊपर अन्नपूर्णा, मध्य में हरसिद्धि और नीचे माता कालका जी विराजमान हैं, इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल के दौरान कराया गया था, यहां दो खंभे हैं जिस पर दीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। मान्यता के मुताबिक यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और 2000 साल पुराना मंदिर है। इस मंदिर में बलि नहीं दी जाती, श्रीसूक्त और वेद मंत्रों से इनकी पूजा होती है। नवरात्रि के दिनों मां देवी खास पूजा अर्चना की जाती है।

इस मंदिर में 4 प्रवेश द्वार हैं, सभी द्वारों पर सुंदर बंगले बने हुए हैं, मंदिर के दक्षिण-पूर्व कोण में एक बावड़ी है, जिसके अंदर एक स्तंभ है, यहां श्रीयंत्र बना हुआ है, मंदिर के ठीक सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं जहां नवरात्रि में इन पर दीप मालाएं लगाई जाती हैं। मान्यता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर जहां मां हरिसिध्दी बिराजमान हैं वहां भैरव पर्वत पर मां सती के ओठ गिरे थे और सती माता की कोहनी गिरी थी,  इसीलिए इस मंदिर को शक्तिपीठों में स्थान प्राप्त है। जिस क्षेत्र में मंदिर स्थित है, उसे विक्रमादित्य की तपोभूमि भी माना जाता है

शिप्रा नदी (राम घाट): यह नदी बाबा महाकाल मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूरी और हरिसिद्ध माता मंदिर के पीछे है, इस नदी पर राम घाट हैं…जहां हर रोज भोर के समय और सूर्यास्त के दौरान मां गांगी की आरती होती हैं। मोक्षदायनी नदी शिप्रा का काफी पौराणिक महत्‍व है, यह मध्य प्रदेश की धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी उज्जैन से होकर गुजरती है, जानकारों के मुताबिक शिप्रा नदी विष्णु जी के रक्त से उत्पन्न हुई थी, ब्रह्मपुराण में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है,   महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ग्रंथ ‘मेघदूत’ में शिप्रा का वर्ण किया है, जिसमें इसे अवंति राज्य की प्रधान नदी कहा गया है, महाकाल की नगरी उज्जैन, शिप्रा तट पर ही बसी है,स्कंद पुराण में शिप्रा नदी की महिमा का वर्णन है, प्राचीन मान्यता के मुताबिक प्राचीन समय में इसका तेज बहाव के कारण ही नाम शिप्रा प्रचलित हुआ,  इस स्थान पर हर 12 साल में सिंहस्थ मेला भी लगता है जिसे कुंभ मेला भी कहा जाता है, जानकारी के मुताबिक ये नदी अपने उद्गम स्थल बहते हुए चंबल नदी से मिलती है, जो 195 किमी लंबी है, इसे हिंदू धर्म में गंगा नदी के रूप में पवित्र माना गया है। शिप्रा की प्रमुख सहायक नदियां खान और गंभीर हैं।

दरअसल शिप्रा नदी के किनारे सैकड़ों हिंदू मंदिर भी शामिल हैं, जहां एक बारहमासी नदी है जिसे गंगा नदी के समान पवित्र माना जाता है, शिप्रा शब्द का प्रयोग “पवित्रता” आत्मा, भावनाओं, शरीर आदि या “पवित्रता” या “स्पष्टता” के प्रतीक के रूप में किया जाता है, शिप्रा नदी भारत की पवित्र नदियों प्रचलित है… जिसे लोग पूजते हैं, उससे जुड़ी कई रोचक कथाएं भी प्रचलित हैं,, कुछ लोगों का मानना है कि शिप्रा की उत्पत्ति वराह के हृदय से हुई थी और भगवान विष्णु ने एक सुअर के रूप में अवतार लिया था, इसके अलावा शिप्रा के तट पर ऋषि संदीपनी का आश्रम है जहां भगवान विष्णु के आठवें अवतार नीले भगवान कृष्ण ने अध्ययन किया था।

श्री-राम मंदिर: यह मंदिर मां हरिसिद्धी देवी मंदिर के थोड़ी दूर स्थित है और शिप्रा नदी के उपरी तट पर है,  इस मंदिर का निर्माण कार्य पाटीदार समाज ने किया था, जहां राम दरबारि की सुंदिर मूर्तियां मौजूद हैं, साथ ही अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित है, इर मदिर में मुख्य प्रतिमा चंद्रघंटा देवी की है, क्षी राम, लक्ष्मण, जानकी की सुंदिर प्रतिमाएं हैं।

गोपाल मंदिर: यह मंदिर महाकाल मंदिर की बाई तरफ करीब 1 किलोमाटरी की दूरी पर स्थित है,  विशाल मंदिर बड़ा बाजार चौक के बीच में स्थित है, इसका निर्माण 19 वीं शताब्दी में महाराजा दौलत राव शिंदे की रानी बैजीबाई शिंदे ने करवाया था, मराठा वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है,इसका गर्भगृह संगमरमर से जड़ा है, दरवाजे चांदी से मढ़े हैं, प्रसिद्ध मंदिर नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है, यह द्वारकाधीश गोपाल मंदिर’ करीब 2 सौ साल पुराना बताया जाता है, त्यौहारो में श्रद्धालुओं की संख्या यहां बढ़ जाती है, मंदिर के चांदी के द्वार आकर्षण का मुख्य केन्द्र हैं,  ‘द्वारकाधीश गोपाल मंदिर’ में भगवान द्वारकाधीश, शंकर, पार्वती, और गरुण भगवान की मूर्तियां भी हैं, यहाँ जन्माष्टमी’ के अलावा ‘हरिहर का पर्व’ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, हरिहर के समय भगवान महाकाल की सवारी रात 12 बजे आती है, तब यहाँ हरिहर मिलन अर्थात् विष्णु और शिव का मिलन होता है,  जहाँ पर उस वक्त डेढ़ दो घंटे पूजा-अर्चना होता है…इस अवसर पर बड़ी सख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

मंगलनाथ मंदिर: यह मंदिर बाबा महाकाल मंदिर से करीब 9 किलोमीटर दूरी पर है, दरअसल उज्जैन में एक धार्मिक केंद्र माना जाता है, जिसे मंगल, यानि मंगल की जन्मस्थली माना जाता है, मंदिर में हर दिन सैकड़ों भक्त देवी-देवता आराधना के लिए आते हैं, यहां के विचार किया जाता है कि यह स्थान नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा दिलाता है, मंदिर कई पुराणों पर आधारित धार्मिक कथाओं के लिए जाना जाता है और आप यहां समय बिता सकते हैं और धार्मिक कथाएं सुन सकते हैं।

यह मंदिर मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन में स्थित है। पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-पाठ करवाने आते हैं। यूँ तो देश में मंगल भगवान के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व दिया जाता है, कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।

काल भैरव का मंदिर: यह पवित्र मंदिर महाकाल से कुछ दूरी पर स्थित है,  मंदिर कई सालों से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है, इस मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी आस्था है, यह शिप्रा नदी के तट पर स्थित है, इस मंदिर में हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि भगवान कालभैरव की प्रतिमा को पात्र से शराब का भोग लगाया जाता है और देखते ही देखते पात्र का भोग खाली हो जाता है, जो हर किसी को हैरान करता है, यह शराब कहां जाती है, जो आज भी रहस्य बना हुआ है, वैज्ञानिक पर अचंभित है, यहां ब रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखती है।

चिंतामन गणेश मंदिर:  (CHITAMANI GANESH  TEMPLE) यह मंदिर उज्जैन में भगवान गणेश को समर्पित मंदिर है, यह उज्जैन में भगवान गणेश का बड़ा मंदिर है, जिसे 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था, यह मंदिर महाकालेश्वर से 6 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां भगवान गणेश तीन रूपों चिंतामण, इच्छामन और सिद्धिविनायक रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम ने की थी, मान्यता है कि इसी समय लक्ष्मण जी ने यहां एक बावड़ी भी बनवाई थी जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं, कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं उनकी सारी चिंताएं खत्म हो जाती हैं, वहीं बुधवार का दिन मंदिर में बड़ा भीड़ होती है।

भर्तृहरि गुफा: अगर आप ऐसे व्यक्ति हैं जो किसी जगह के पुरातात्विक पहलुओं का आनंद लेते हैं, तो भर्तृहरि गुफाओं को देखना, आपके लिए खास एहसास हो सकता है। यहां, आप क्षेत्र के इतिहास के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं और सदियों पहले उज्जैन में रहने वाले लोगों के जीवन के बारे में जान सकते हैं। आप भर्तृहरि गुफाओं में प्रवेश के लिए बिना किसी टिकट के सुबह 6 बजे से रात 9 बजे के बीच जा सकते हैं।

चौबीस खंभा मंदिर: यह मंदिर उज्जैन जंक्शन से 2 किमी की दूरी पर स्थित है, चौबीस खंबा मंदिर खूबसूरत मंदिर है, महाकाल मंदिर के पास यह उज्जैन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, उज्जैन में सबसे लोकप्रिय दर्शनीय स्थलों में से एक है, 9वीं या 10वीं शताब्दी का यह मंदिर छोटी माता और बड़ी माता को समर्पित है,  हिंदू धर्म के अनुयायियों के बीच एक पवित्र स्थल के रूप में प्रसिद्ध है,  इस शानदार मंदिर को राजा विक्रमादित्य के समय में बनाया गया था, इस मंदिर की संरचना को सुंदर बनाने वाले 24 स्तंभों से मंदिर को अपना नाम मिला,  प्रवेश द्वार पर मंदिर की संरक्षक देवी-  महालया, और महामाया की छवियों को दिखाया गया है, जिनके नाम मंदिर के फुटस्टेप पर उकेरे गए हैं, शुक्ल पक्ष की अष्टमी और नवरात्रि के शुभ दिन यहां सबसे खास होते हैं और इन दिनों में बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

गढ़कालिका मंदिर: कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे, कालिदास के संबंध में मान्यता है कि जब से वे इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। कालिदास रचित ‘श्यामला दंडक’ महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहाँ प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है।

नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी): यह मंदिर शिप्रा के त्रिवेणी घाट पर स्थित है, यह मंदिर उज्जैनी शहर के पुराने स्थल से दूर स्थित है, जो 9 ग्रहों को समर्पित है, शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है,अब  इसका धार्मिक महत्व बढ़ चुका है, हालांकि प्राचीन ग्रंथों में इसका कोई ज्ञात संदर्भ नहीं है।

इस्कॉन मंदिर: इस्कॉन मंदिर देश भर में एक ही नाम के मंदिरों की श्रृंखला का एक हिस्सा है, यह मंदिर गरीबों और जरूरतमंदों के जीवन को विकसित करने की दिशा में लक्षित एक धर्मार्थ संगठन के रूप में कार्य करता है,इस मंदिर भवन के सुंदर डिजाइन का आनंद ले सकते हैं, जहां सुंदर बगीचों के परिसर भी है।

संदीपनी आश्रम: यह आश्रम शिप्रा नदी के तट पर स्थित है, इस आश्रम का धार्मिक महत्व है,  इस आश्रम में ही भगवान श्री-कृष्ण ने अपने भाई बलराम और मित्र सुदामा के साथ गुरु संदीपनी से शिक्षा ग्रहण की थी, आश्रम के पास एक पत्थर भी है, जिसमें 1 से लेकर 100 तक की संख्या उकेरी गई है, मान्यता के मुताबिक इन संख्याओं को खुद गुरु संदीपनी ने उकेरा था, इस आश्रम के पास एक गोमती कुंड भी है जिसका बड़ा धार्मिक महत्व है, मान्यता है कि कुंड में भगवान श्रीकृष्ण सभी तरह के पवित्र पानी का आवाह्न करते थे ताकि पवित्र जल की तलाश में उनके गुरु संदीपनी को यात्रा न करनी पड़े।

कालिदास अकेडमी: कालिदास अकादमी संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से उज्जैन में सन् 1978 में स्थापित हुई थी, महाकवि कालिदास ने नाम पर बनी अकादमी शास्त्रीय साहित्य, शास्त्रीय रंगमंच एवं विभिन्न कला-परम्पराओं के गहन अध्ययन, शोध, अनुशीलन, प्रकाशन एवं प्रयोग के सक्रिय केन्द्र के रूप में कार्यरत है।

वेधशाला: उज्जैन शहर में दक्षिण की ओर क्षिप्रा के दाहिनी तरफ जयसिंहपुर नामक स्थान में बना यह प्रेक्षा गृह “जंतर महल’ के नाम से जाना जाता है। इसे जयपुर के महाराजा जयसिंह ने बनवाया। उन दिनों वे मालवा के प्रशासन नियुक्त हुए थे। जैसा कि भारत के खगोलशास्री तथा भूगोलवेत्ता यह मानते आये हैं कि देशांतर रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है।

जंतर मंतर:  जंतर मंतर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहां आप शाम के वक्त घूम सकते हैं, पिकनिक मना सकते हैं साथ ही बैठकर समय बिता सकते हैं,आप जंतर मंतर के आसपास स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड का भी लुत्फ उठा सकते है, जंतर मंतर हर दिन सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं, भारतीय पर्यटकों के लिए एंट्री फीस 40 रुपये प्रति व्यक्ति है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह  200 रुपये प्रति व्यक्ति है, आप एक ऑडियो गाइड को 150 रुपये में खरीदकर सुन सकते हैं।

कालियादेह पैलेस: हालांकि उज्जैन को भारत में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाने का एक बड़ा योगदान मंदिरों की संख्या है, लेकिन शहर में सिर्फ भक्तों और मंदिरों  के अलावा भी बहुत कुछ है। यदि आप क्षेत्र में उज्जैन के ऐतिहासिक महत्व के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो आपको कालिदेह महल की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। महल राजाओं और राजकुमारों के साथ उज्जैन के सांस्कृतिक महत्व और उसके इतिहास का प्रतीक है। आप दिन के किसी भी समय कालियादेह पैलेस में जा सकते हैं। इसे घूमने के लिए टिकट का पैसा भी नहीं खर्च करना पड़ेगा

पीर मत्स्येन्द्रनाथ: पीर मत्स्येन्द्रनाथ अपनी खास आर्किटेक्चरल डिजाइन के लिए जाना जाता है। पीर मत्स्येन्द्रनाथ गंगा नदी के किनारे पर बनाया गया है। आप अपना समय सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान नदी के सुंदर दृश्यों को निहारने में व्यतीत कर सकते हैं। आप स्वयं पीर मत्स्येंद्रनाथ के डिजाइन को भी देखने का आनंद ले सकते हैं।

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