तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है, जहां एक तरफ किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं, और कि कृषि कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार अपनी बातों पर कायम है।
हरियाणा के पंचकूला में किसानों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई, चंडीगढ़ में हरियाणा के राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने के लिए हजारों किसान पंचकूला से निकले थे, रास्ते में पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बैरिकेड्स लगा रखे थे, गुस्साए किसानों ने बैरिकेड्स उखाड़ फेंके और आगे बढ़ गए, सिर्फ बैरिकेडिंग ही नहीं, किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने सीमेंट की बीम भी लगाई थी।
लखनऊ में भी किसान संगठन जब राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने निकले तो पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर बापू भवन से पहले ही उन्हें रोक दिया, हालांकि, बाद में आधा दर्जन से ज्यादा किसान नेता राज्यपाल से मिलकर ज्ञापन सौंपकर आए, किसानों ने बताया कि जब तक काले कानूनों को वापस नहीं लिया जाता, तब तक हर 26 तारीख को ऐसे ही प्रदर्शन किया जाएगा।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कृषि कानूनों के खिलाफ जारी आंदोलन को तेज करने का ऐलान किया है उन्होंने एक ‘ट्रैक्टर रैली’ की ओर इशारा करते हुए कहा कि दिल्ली बिना ट्रैक्टर के नहीं मानती है, पिछले साल लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर इस मौके पर किसानों ने शनिवार को ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाया, पंजाब और हरियाणा से सैकड़ों किसानों ने आंदोलन में हिस्सा लिया।
दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान संगठनों के आंदोलन को 7 महीने पूरे हो गए, इस बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान संगठनों से आंदोलन खत्म करने की अपील की, और कहा कि सरकार तीनों कानूनों के प्रावधानों पर बातचीत फिर से शुरू करने को तैयार है, सरकार और किसानों के बीच अब तक इससे पहले 11 दौर की बातचीत हो चुकी है, जिसमें कोई सहमति नहीं बन सकी, हालांकि दोनों के बीच आखिरी बैठक 22 जनवरी को हुई थी, किसानों की 26 जनवरी को हिंसक ट्रैक्टर रैली के बाद कोई बातचीत नहीं हुई।
अपनी मांगों को लेकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान, दिल्ली बॉर्डर पर पिछले 7 महीने से आंदोलन कर रहे हैं, किसानों का मानना है कि नए कृषि कानून कृषि मंडी में फसलों की खरीद की व्यवस्था को समाप्त कर देंगे, सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है और समाधान खोजने के लिए एक समिति का गठन किया है, कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
देशभर में कई लोग इन नए कानूनों के पक्ष में हैं फिर भी, कुछ किसानों को कानूनों के प्रावधानों के साथ कुछ समस्या है, सरकार ने विरोध कर रहे किसान संगठनों के साथ 11 दौर की बातचीत की सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी (MSP) बढ़ा दिया और एमएसपी पर अधिक मात्रा में खरीद कर रही है।
किसानों का विरोध प्रदर्शन पिछले साल 26 नवंबर को शुरू हुआ था , अब कोरोना संकट के बावजूद 7 महीने पूरे हो चुके हैं, तोमर और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल समेत तीन केंद्रीय मंत्रियों ने प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के साथ 11 दौर की बातचीत की है, पिछली बैठक 22 जनवरी को हुई थी जिसमें 41 किसान समूहों के साथ सरकार की बातचीत में गतिरोध पैदा हुआ, क्योंकि किसान संगठनों ने कानूनों को निलंबित रखने के केंद्र के प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
केंद्र सरकार ने 20 जनवरी को हुई 10वें दौर की बातचीत के दौरान इन कानूनों को एक से डेढ़ साल के लिए कानूनों को निलंबित रखने और समाधान खोजने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी, जिसके बदले में सरकार की अपेक्षा थी कि विरोध करने वाले किसान दिल्ली की सीमाओं से अपने घरों को वापस लौट जाएं।
किसान संगठनों ने आरोप लगाया है कि ये कानून मंडी और एमएसपी खरीद प्रणाली को खत्म कर देंगे और किसानों को बड़े व्यावसायिक घरानों की दया पर छोड़ देंगे, सरकार ने आशंकाओं को गलत बताते हुए खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को, अगले आदेश तक तीन कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी, गतिरोध को दूर करने के लिए चार सदस्यीय समिति को नियुक्त किया था, हालांकि भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने समिति से खुद को अलग कर लिया था।
हालांकि किसान और सरकार के बीच 11 बार बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन अब तक कोई सहमति नहीं बनी,
किसानों की मांग है कि सरकार तीनों कानूनों को रद्द करे और MSP पर गारंटी का कानून लेकर आए, लेकिन सरकार कानूनों को वापस नहीं लेना चाहती, किसान चाहते हैं तो इसमें संशोधन किए जा सकते हैं।