सुप्रीम कोर्ट में लंबित समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं को अब संविधान पीठ को भेज दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इस मामले पर फिर सुनवाई हुई। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुये मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ के पास ट्रांसफर कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक पीठ में इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल से शुरू होगी।

सुनवाई का होगा सीधा प्रसारण

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह से संबंधित मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है और इस पर पांच-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार किए जाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जाएगा।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा…

“यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों का एक-दूसरे पर प्रभाव है। पीठ ने कहा, हमारी राय है कि अगर उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाता है, तो यह उचित होगा। इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं।”

केंद्र सरकार कर रही है विरोध

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर दोनों पक्षों की दलीलों में कटौती नहीं की जाये, क्योंकि इस फैसले का पूरे समाज पर प्रभाव पड़ेगा। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विरोध किया है। केंद्र ने रविवार को हुई सुनवाई में कहा था, “याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। केंद्र ने कहा कि समलैंगिकों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि इन याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है”। उसने दावा किया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन के ‘पूर्ण विनाश’ का कारण बनेंगे।

किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर रहे- कानून मंत्री

सुप्रीम कोर्ट में विरोध करने के एक दिन बाद, कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि “सरकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोगों की गतिविधियों में ‘हस्तक्षेप’ नहीं करती है। लेकिन विवाह की संस्था से जुड़ा मामला नीतिगत विषय है।” उच्चतम न्यायालय में केंद्र के रुख से जुड़े एक सवाल के जवाब में रीजीजू ने कहा, “सरकार किसी व्यक्ति के निजी जीवन व उसकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर रही है। इसलिए कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जब शादी की संस्था से जुड़ा कोई मुद्दा आता है तो यह नीतिगत विषय है।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here