उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में चर्चित प्रभात गुप्ता हत्याकांड (Prabhat Gupta Murder Case) मामले में केंद्रीय मंत्री (Union Minister of State) अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) को बड़ी राहत मिल गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ (Lucknow Bench) ने केंद्रीय मंत्री समेत चार आरोपियों को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें उन्हें बरी किया गया था।
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बता दें, साल 2004 में यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में पहुंचा था। तब से अब तक लखनऊ बेंच ने हत्याकांड में 3 बार फैसला सुरक्षित रखा, लेकिन फैसला नहीं आ पाया। आज जस्टिस AR मसूदी और OP शुक्ला की बेंच ने केस पर फैसला दे दिया है। उच्च न्यायालय ने अजय मिश्रा के साथ-साथ अदालत ने इस मामले में आरोपी सुभाष मामा, शशि भूषण पिंकी और राकेश डालू को भी बरी कर दिया है।
क्या है प्रभात गुप्ता हत्याकांड?

दरअसल, साल 2000 में जिला पंचायत चुनाव के दौरान लखीमपुर के तिकुनिया में बीच बाजार लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता प्रभात गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। घटना के वक्त मोटरसाइकिल पर सवार चार हमलावर ताबड़तोड़ फायरिंग के बाद फरार हो गए थे।
टेनी से थी प्रभात गुप्ता की आपसी रंजिश
प्रभात गुप्ता तिकुनिया के रहने वाले थे। पास के बनवारीपुर गांव में अजय मिश्र टेनी रहते थे। दोनों के बीच सियासी रंजिश थी और आपस में विरोध भी था। प्रभात हत्याकांड के बाद अजय मिश्र टेनी पर हत्या कराने का आरोप लगा। इसके बाद अजय मिश्र टेनी समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर होने के कारण जिला जज ने सभी की जमानत खारिज कर दी है।
जिला न्यायाधीश ने जमानत नामंजूर की
मामले में 25 जून 2003 को अजय मिश्र टेनी जिला जज (District Judge) चंद्रमा सिंह की अदालत में हाजिर हुए। जिला जज ने टेनी की जमानत को नामंजूर कर दी थी। हालांकि, उनके दिल का मरीज होने के कारण जेल के बजाय अस्पताल में भर्ती कराने के आदेश दिए। वहीं अगले दिन अपर जिला जज ने अजय मिश्र ट्रेनी की जमानत मंजूर करते हुए उनको रिहा कर दिया।
29 मार्च 2004 को लखीमपुर जिला कोर्ट में सुनवाई होने के बाद 15 मई 2004 को अजय मिश्र टेनी समेत चारों आरोपियों को पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ वर्ष 2004 में ही हाईकोर्ट में अपील दाखिल की गई थी। तब से अब तक हाईकोर्ट ने तीन बार फैसला सुरक्षित कर लिया था।